शिक्षाखबरसार

एसजीआरआर विश्वविद्यालय में रिसर्च मेथाडोलॉजी पर तीन दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

Research Methodology Workshop

एसजीआरआर विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय द्वारा एसजीआरआर पब्लिक स्कूलों के शिक्षकों एवं शोध छात्रों के लिए ऐक्शन रिसर्च और रिसर्च मेथाडोलॉजी विषय पर अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के सहयोग से 21 मई से 23 मई तक तीन दिवसीय कार्यशाला का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षकों को अनुसंधान की मूलभूत समझ प्रदान करना और कक्षा में सुधार हेतु चिंतनशील एवं व्यवस्थित दृष्टिकोण विकसित करना रहा।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज ने कार्यशाला के सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की।

कार्यशाला का उद्घाटन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो डॉ कुमुद सकलानी, कुलसचिव डॉ लोकेश गंभीर, कार्यक्रम की संयोजक प्रो. मालविका सती कांडपाल ,समन्वयक डॉ. रेखा ध्यानी द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।
कार्यशाला में प्रमुख विषय विशेषज्ञ डॉ. विपिन चौहान और वर्तुल ढौंढियाल उपस्थित रहे।

एसजीआरआर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डॉ.) कुमुद सकलानी ने अपने संदेश में कहा, “शिक्षक भावी पीढ़ी के निर्माता होते हैं। यदि उन्हें शोध की दृष्टि और कौशल से सशक्त किया जाए, तो शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक परिवर्तन संभव है। विश्वविद्यालय हमेशा ऐसे नवाचारों और उन्नयन प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।”

रजिस्ट्रार डॉ. लोकेश गंभीर ने शिक्षा संकाय को इस महत्वपूर्ण कार्यशाला के आयोजन हेतु बधाई दी और कहा कि यह प्रयास विश्वविद्यालय के नवाचार तथा गुणवत्ता शिक्षा की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने शिक्षकों को सतत अधिगम और अनुसंधान आधारित शिक्षण अपनाने के लिए प्रेरित किया।

इस कार्यशाला में कुल 54 प्रतिभागियों ने भाग लिया साथ ही दिनभर चले विभिन्न अकादमिक सत्रों में उत्साहपूर्वक सहभागिता की।

कार्यशाला की शुरुआत डॉ. विपिन चौहान द्वारा “अनुसंधान क्या है और शैक्षिक अनुसंधान क्यों आवश्यक है” विषय पर हुई, जिसमें उन्होंने अनुसंधान की परिभाषा, उद्देश्य और शिक्षकों के लिए इसकी उपयोगिता को सरल और व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से समझाया। उन्होंने बताया कि कैसे शिक्षक अनुसंधान के माध्यम से अपनी कक्षा की समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

इसके बाद विशेषज्ञ वर्तुल ढौंढियाल ने “शोध के दार्शनिक दृष्टिकोण” पर व्याख्यान दिया। उन्होंने गुणात्मक एवं मात्रात्मक शोध पद्धतियों की अवधारणाएं स्पष्ट कीं और बताया कि कैसे विभिन्न दृष्टिकोण शोध की दिशा तय करते हैं।

वही कार्यशाला की संयोजक प्रो डॉ मालविका कांडपाल ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला के दूसरे दिन डॉ. विपिन चौहान “क्रियात्मक अनुसंधान: क्या है और क्या नहीं है” विषय पर विस्तृत जानकारी दी।

इसके पश्चात वर्तुल ढौंढियाल “केस स्टडी के माध्यम से वैधता और समझ” पर अपने विचार साझा किया ।

वही तीसरे और अंतिम दिन डॉ. विपिन चौहान “क्रियात्मक अनुसंधान प्रलेखन” पर व्यावहारिक सत्र लिया, जिसमें वह शोध प्रक्रिया को प्रभावी रूप से कैसे दस्तावेजीकृत किया जाए ताकि वह भविष्य में भी इसका प्रयोग कर सके।

अंत में वर्तुल ढौंढियाल ने “अपना क्रियात्मक अनुसंधान कैसे योजना बनाएं” विषय पर सत्र का संचालन करेंगे।जिसमें वह शिक्षकों को उनके विद्यालय संबंधी समस्याओं के आधार पर प्रारंभिक शोध योजना बनाने हेतु प्रोत्साहित किया।

प्रो. मालविका सती कांडपाल ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए शिक्षा संकाय की निरंतर गुणवत्ता उन्नयन की भावना को दोहराया और विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज के आशीर्वाद के लिए आभार व्यक्त किया, जिनकी प्रेरणा से विश्वविद्यालय निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button