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100 अरब डॉलर कृषि निर्यात लक्ष्य: नई दिल्ली में राउंडटेबल चर्चा

agricultural export

  • आईआईएफटी में आयोजित रुरल वॉयस मीडिया कांफ्रेंस में दिग्गजों ने दिया नीति से खेती तक व्यापक बदलाव पर जोर

भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) द्वारा रूरल वॉयस मीडिया के सहयोग से नई दिल्ली स्थित आईआईएफटी परिसर में कृषि निर्यात (agricultural export) पर एक राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में नीति-निर्माताओं, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, विदेश व्यापार और कृषि विशेषज्ञों ने “100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य” को हासिल करने को लेकर मंथन किया।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए आईआईएफटी के कुलपति प्रो. राकेश मोहन जोशी ने कहा कि वैश्विक बाजार में टिकाऊ प्रतिस्पर्धा के लिए निरंतर प्रयास जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय सफलता पाई है, लेकिन अब इस सफलता को कृषि निर्यात में भी दोहराने की आवश्यकता है। उन्होंने जोर दिया कि उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता और नीति स्थायित्व पर ध्यान देना होगा।

कृषि निर्यात (agricultural export) की चुनौतियां और अवसर सम्मेलन के पहले सत्र में एपीडा के सचिव डॉ. सुधांशु ने कहा कि निर्यात बढ़ाने के लिए किसानों, एफपीओ और निर्यातकों को एक वैल्यू चेन के रूप में संगठित होना होगा। साथ ही गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज (GAP) को अपनाना होगा। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे निर्यात की मांग और गुणवत्ता के अनुरूप उत्पादन कर सकें। उन्होंने बताया कि बनारस को एग्री एक्सपोर्ट हब के रूप में विकसित किया गया है, जहां से अब 1000 टन फल-सब्जियों का निर्यात हो रहा है। उन्होंने लीची की शेल्फ लाइफ बढ़ाने जैसे नवाचारों का भी जिक्र किया।

एगवाया के पार्टनर सिराज ए. चौधरी ने कहा कि भारत का निर्यात अक्सर सरप्लस उत्पादन पर आधारित होता है, न कि आयातकों की जरूरतों पर। इसलिए कुछ ही उत्पादों का निर्यात हो पाता है। कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए उन्होंने हाई वैल्यू उत्पादों पर फोकस करने और उत्पाद आधारित लक्ष्य तय करने का सुझाव दिया।

भारतीय चावल निर्यातक महासंघ (आईआरईएफ) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पी.के. स्वैन ने टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उन्नत तकनीक और कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर के बिना निर्यात संभव नहीं है। डेयरी और ताजे फल-सब्जियों में निर्यात की काफी संभावनाएं हैं, लेकिन नॉन-टैरिफ बैरियर्स बड़ी चुनौती हैं।
100 अरब डॉलर लक्ष्य की दिशा में अगला कदम

agricultural export : दूसरे सत्र में पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने चावल के निर्यात पर निर्भरता को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जल संकट के चलते पंजाब-हरियाणा में धान की जगह अन्य फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में अगर अगले 15-20 साल में चावल निर्यात में कमी आती है तो उसकी भरपाई कैसे होगी, इस पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कृषि निर्यात को 50 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक ले जाने लिए कुछ बड़े वॉल्यूम वाले उत्पादों की जरूरत बताई, जिसमें गेहूं या दूसरे कुछ उत्पाद हो सकते हैं।

राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (NCEL) के प्रबंध निदेशक अनुपम कौशिक ने कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी कर निर्यात के लिए सरप्लस पैदा करने को जरूरी बताया। लेकिन कपास में हमारा उत्पादन बढ़ने की बजाय घट गया है। जिससे हम निर्यात की बजाय कपास से आयातक बन गये हैं। उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ पोषण सुरक्षा पर भी जोर दिया। साथ ही निर्यात के लिए सरप्लस तैयार पर भी जोर दिया।

आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ आयात में कमी लाना भी जरूरी है। अभी देश के कृषि निर्यात में चावल की बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन पानी की खपत को देखते हुए सस्टेनेबिलिटी एक बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा कि किसानों को निर्यात और गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज के बारे में भी जागरूक करने की आवश्यकता है।

agricultural export : ट्रेसेबिलिटी और फूड सेफ्टी है बड़ी चुनौती कृषि अर्थशास्त्री और आईसीएआर में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. स्मिता सिरोही ने कहा कि ट्रेसेबिलिटी, फूड सेफ्टी और गुणवत्ता मानकों के बिना निर्यात संभव नहीं। लेकिन किसानों को निर्यात के बारे में जानकारी ही नहीं है। फूड सेफ्टी और ट्रेसेबिलिटी जैसी बातें न तो किसानों को बताई जाती हैं और न ही कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कृषि विज्ञान केंद्रों के जरिये किसानों को गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिस में कुशल बना सकते हैं। कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है।

व्यापार समझौतों को लेकर डॉ. सिरोही का मानना है कि इसमें लेन-देन से ही काम चलेगा। ऐसा नहीं हो सकता है कि हम सिर्फ निर्यात करेंगे और आयात नहीं करेंगे।

मार्केटिंग और वैश्विक प्रचार पर जोर
दूसरे सत्र का समापन करते हुए आईआईएफटी के कुलपति प्रो. राकेश मोहन जोशी ने कहा कि जैसे अमेरिका के वाशिंगटन एप्पल और कैलिफोर्निया वालनट भारतीय बाजार में जगह बना रहे हैं, वैसे ही भारत को भी अपने उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार में आक्रामक मार्केटिंग करनी होगी। हम कई ऐसी वस्तुओं का आयात कर रहे हैं, जिनका उत्पादन आसानी से बढ़ा सकते हैं।

रूरल वॉयस के प्रधान संपादक हरवीर सिंह ने कहा कि कृषि निर्यात (agricultural export) किसानों की आय बढ़ाने का मजबूत जरिया बन सकता है। उन्होंने इस सम्मेलन को सार्थक संवाद की दिशा में एक अहम कदम बताया। इस मौके पर रूरल वर्ल्ड पत्रिका के कृषि निर्यात विशेषांक का भी विमोचन किया गया। सम्मेलन का संचालन आईआईएफटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरुणिमा राणा ने किया। इस अवसर पर आईआईएफटी की विभागाध्यक्ष डॉ. पूजा लखनपाल और सहयोगी उपस्थित रहे।

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