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प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला श्शैलेशश् का सृजन-मूल्यांकन पर चौदहवां राष्ट्रीय व्याख्यान संपन्न

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दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के तत्वावधान में आयोजित ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर चौदहवां ऑनलाइन व्याख्यान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह व्याख्यान प्रो. चमोला के चर्चित बाल कविता संग्रह ’‘मेरी दादी बड़ी कमाल’’ पर केंद्रित था। इस अवसर पर मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति और प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. रविंद्र दत्तात्रेय कुलकर्णी ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया।
समारोह के विशिष्ट अतिथि कोचीन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आर. शशिधरन और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व प्रति-कुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा रहे।
प्रो. कुलकर्णी ने अपने वक्तव्य में प्रो. चमोला के साहित्यिक योगदान की सराहना करते हुए उनके बहुआयामी लेखन और हिंदी साहित्य में अपार योगदान की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य का सृजन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए उनके चरित्र और मूल्यों के निर्माण में सहायक होता है।
’‘मेरी दादी बड़ी कमाल’’ की कविताओं को गहराई से बाल मनोविज्ञान पर आधारित बताया गया, जो बच्चों और बड़ों दोनों को समान रूप से आकर्षित करती हैं। इस संग्रह की कविताओं में बाल जिज्ञासा, मानवीय मूल्य और समाजिक यथार्थ का मार्मिक चित्रण है, जो बाल साहित्य को नए आयाम प्रदान करता है। प्रो. चमोला के लेखन को सहज, सरल और प्रभावी बताते हुए वक्ताओं ने उनके लेखन में उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धारा को उकेरने की सराहना की।
इस अवसर पर, प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने प्रो. चमोला की लेखनी को हिमालय की तरह शुद्ध और पारदर्शी बताया। उन्होंने कहा कि प्रो. चमोला का लेखन बच्चों के साथ-साथ बड़े होते समाज को भी एक नई दिशा प्रदान करता है।
इस आयोजन का सफल संचालन प्रो. मंजुनाथ अंबिग, भावना गौड़ और विनीता सेतुमाधवन ने किया। प्रो. दिनेश चमोला के सृजन मूल्यांकन के तहत इस प्रकार के व्याख्यान हिंदी साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

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