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धाद हरेला माह मे “तपता हुआ शहर और असंतुलित विकास” पर विमर्ष का आयोजन

The diminishing greenery

सामाजिक संस्था धाद और दून लाइब्रेरी रिसर्च सेंटर द्वारा हरेला माह मे देहरादून के बढ़ते तापमान, असंतुलित विकास और घटती हुई हरियाली पर विमर्ष का आयोजन दून लाइब्रेरी मे किया गया।

मुख्य वक्ताओं मे से एक पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ग्लोबल चिंता है और देहरादून का तापमान 43 डिग्री जाना भी उसी का परिणाम है, इससे बचने का तरीका पेड़-पौधे और हरियाली ही है। हमें ज्यादा से ज्यादा लोकल संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए और पेड़ लगाने के साथ साथ उसके रख रखाव का ध्यान भी रखना चाहिए।

एक प्रश्न का जवाब देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रीनू पॉल ने कहा दून वैलि नदियों, रिजर्व फॉरेस्ट, नहरों, नाले और खेतों की सुन्दर संरचना थी जो आज हीट आइलैंड बनता जा रहा है। इसका एक कारण देहरादून के आसपास के वनो का विभिन्न परियोजनाओं के चलते काटन होना और शिवालिक रेंज का कटाव भी है।

सिटिजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा ने धाद संस्था को इस तरह के सत्र आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि इस तरह के और आयोजन किये जाने की जरूरत है ताकि समाज मे पर्यावरण को लेकर एक समझ बन सके। विकास की परियोजनाओं के चलते पेड़ों का कटान तो जोर-शोर से किया जाता है पर उसकी ऐवज मे जो पेड़ लगने है उनकी बात आज तक कोई नहीं कर रहा। साथ ही उन्होंने बताया कि सहस्त्रधारा रोड के जिन पेड़ों का प्रतिरोपण का काम किया गया वो भी आज मरुस्थल बन गया है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा ज्यादातर विकासशील देशों में हो रहा अनियोजित विकास पर्यावरण असंतुलन को जन्म दे रहा है और हम सबका विकास की इस धुरी पर घूमना एक बड़ी विडंबना है। विकास के इस असंतुलित और विनाशकारी मॉडल में उस समावेशी दृष्टिकोण की कमी है जो प्रकृति के हर अंग में संतुलन कायम करता है।

इस वर्ष देहरादून में तापमान 43 डिग्री के पार जाना और दूसरी जगहों पर सूखा, अतिवर्षा, बाढ़ और भूस्खलन के साथ ही क्लाइमेट चेंज का एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा हो गया है। ऐसे में विचार करना जरूरी होगा कि आने वाले समय में हमारे विकास का मॉडल क्या हो? हमारी जीवनशैली में क्या बदलाव हो और हम एक नागरिक समाज के रूप में अपने शहर को इस आपदा से बचाने के लिए कैसी भूमिका निभाएं?

धाद के सचिव तन्मय मंमगाई ने बताया कि संस्था हरेला माह के अंतर्गत दो अध्याय पहला हरेला वन जो उन शहरों की बात करता है जो असंतुलित विकास की पहली कड़ी बने हैं और दूसरा हरेला गाँव जो पहाड़ मे पलायन के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते खेतों और उत्पादकता की बात करता है। इसी क्रम मे हमने इस बार सतपुलि संवाद मे पौड़ी गढ़वाल के प्रगतिशील किसानों से भी बातचीत का सत्र आयोजित किया।

सत्र का संचालन धाद की ओर से हिमांशु आहूजा ने किया। इस अवसर पर डॉ एस एस खैरा, हर्ष मणि व्यास, सुरेश कुकरेती, अतुल शर्मा, सुरेंद्र अमोली, अवधेश शर्मा, गणेश उनियाल, उत्तम सिंह रावत, नरेंद्र सिंह रावत, ब्रिगेडियर के जी बहल, इरा चौहान, आशा डोभाल, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, चारू तिवारी, शिव प्रकाश जोशी, डॉ दयानंद अरोड़ा, विकास मित्तल, राजेंद्र विरमानी, आर के गुप्ता, राकेश अग्रवाल, महेंद्र ध्यानी, टी आर बरमोला, विजय भट्ट, मनोहर लाल, सविता जोशी, नरेंद्र उनियाल, बृज मोहन उनियाल, कमला कठैत, दयानंद डोभाल, साकेत रावत, इंदू भूषण सकलानी, आदि मौजूद थे।

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